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"हरिद्वार की घाटी / शिवबहादुर सिंह भदौरिया" के अवतरणों में अंतर

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आ गयी
 
आ गयी
 
यायावर के काम।
 
यायावर के काम।
 
अर्थ टूटे नीर का तालाब
 
 
अब
 
तुमसे कब मिलें।
 
बातें सुषुप्ति की
 
याद नहीं
 
जाग्रति की क्या कहें
 
सपनों तक फैल गईं
 
दफ्तर की फाइलें।
 
संवेदन-आलपीन में
 
नत्थी हैं:
 
सन्नाटे की सुइयाँ
 
चुभोती दिशाएँ,
 
पत्थरों की मार से
 
अर्थ-टूटे नीर का
 
तालाब,
 
कोहरा पहने हुए
 
धुँधले सबेरे का
 
जवाब
 
रोशनी के कँवल-दल
 
कैसे खिलें।
 
 
 
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13:24, 17 फ़रवरी 2017 के समय का अवतरण

एक
दिया है-पर्वतीय घाटी
हरिद्वार की,
वर्त्तिका: इन्द्रधनुष
क्या कहने
सप्तरंगी उजियार की;
आज सँझवाती किसी की
छोड़कर गुण-धाम,
आ गयी
यायावर के काम।