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13:34, 20 मार्च 2017 के समय का अवतरण
जीवन है स्वीकार न मुझको सीधी खिंची लकीर-सा,
चाहे वह झंकार भरा नूतन सितार का तार हो!
गोलाकार क्षितिज रेखा सा भी जीवन लूँगा नहीं-
चाहे वह वन वल्लरियों-सा सुन्दर घूंघरदार हो!
जीवन लूँगा मैं तो आँधी, नद्दी या तूफ़ान-सा,
जिसमें तड़पन हो, ज्वाला हो, गुंजन, मेघ-मलार हो!
1956