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"कभी पाना मुझे / कुंवर नारायण" के अवतरणों में अंतर

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तुम अभी आग ही आग
 
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मैं बुझता चिराग
 
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हवा से भी अधिक अस्थिर हाथों से
 
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पकड़ता एक किरण का स्पन्द
 
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पानी पर लिखता एक छंद
 
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बनाता एक आभा-चित्र
 
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और डूब जाता अतल में
 
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एक सीपी में बंद
 
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कभी पाना मुझे
 
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सदियों बाद
 
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दो गोलार्धों के बीच
 
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झूमते एक मोती में ।
 
झूमते एक मोती में ।
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15:48, 4 नवम्बर 2009 का अवतरण

तुम अभी आग ही आग
मैं बुझता चिराग
 
हवा से भी अधिक अस्थिर हाथों से
पकड़ता एक किरण का स्पन्द
पानी पर लिखता एक छंद
बनाता एक आभा-चित्र

और डूब जाता अतल में
एक सीपी में बंद

कभी पाना मुझे
सदियों बाद

दो गोलार्धों के बीच
झूमते एक मोती में ।