भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"माचिस की तीलियाँ / आनंद खत्री" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आनंद खत्री |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 5: | पंक्ति 5: | ||
|संग्रह= | |संग्रह= | ||
}} | }} | ||
− | {{ | + | {{KKCatNazm}} |
<poem> | <poem> | ||
बुझी हुई माचिस | बुझी हुई माचिस |
14:38, 6 दिसम्बर 2017 के समय का अवतरण
बुझी हुई माचिस
की तीलियों की तरह
हम निढाल पढ़े हुए थे
सिरहाने पे।
सर की आग
पूरे जिस्म को
न जला पाई थी
मेरे गलने में अभी
एक सदी बाकी थी।
कुछ सूझता नहीं
क्यों काठ की तीली
इतनी लम्बी बनायी थी।
वो मसाला जो
तिल-सा कोने में चपका
क्या वही पहचान बनायी थी?
कुछ ताज़ा तीलियों को
देख के उस आग का
अंदाज़ महसूस होता है
जो कभी
हमारे सर भी थी।