भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कजली / 6 / प्रेमघन" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन' |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 10: पंक्ति 10:
 
नैन सजीले बैन रसीले छैल छबीले तेरे रे॥
 
नैन सजीले बैन रसीले छैल छबीले तेरे रे॥
 
तित टरकाय, हाय! क्यों मारत, दिलबर प्यारे मेरे।  
 
तित टरकाय, हाय! क्यों मारत, दिलबर प्यारे मेरे।  
यार प्रेमघन! बेदरदी छबि देखलावत नहिं एरे॥13॥
+
यार प्रेमघन! बेदरदी छबि देखलावत नहिं एरे॥15॥
  
 
॥दूसरी॥
 
॥दूसरी॥
पंक्ति 17: पंक्ति 17:
 
रतनारे मतवारे प्यारे, दूनौ नैन तोहार॥
 
रतनारे मतवारे प्यारे, दूनौ नैन तोहार॥
 
धानी ओढ़नी सोहै सीस पर, अँगिया गोटेदार।  
 
धानी ओढ़नी सोहै सीस पर, अँगिया गोटेदार।  
यार प्रेमघन ललचावत मन बरबस हाय हमार॥14॥
+
यार प्रेमघन ललचावत मन बरबस हाय हमार॥16॥
 
</poem>
 
</poem>

09:56, 21 मई 2018 के समय का अवतरण

॥गुण्डानी लय॥

नैन सजीले बैन रसीले छैल छबीले तेरे रे॥
तित टरकाय, हाय! क्यों मारत, दिलबर प्यारे मेरे।
यार प्रेमघन! बेदरदी छबि देखलावत नहिं एरे॥15॥

॥दूसरी॥

एक दिन तोरे रे जोवन पर चलिहैं छूरी तरवार।
रतनारे मतवारे प्यारे, दूनौ नैन तोहार॥
धानी ओढ़नी सोहै सीस पर, अँगिया गोटेदार।
यार प्रेमघन ललचावत मन बरबस हाय हमार॥16॥