भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"वही ताज है वही तख़्त है / बशीर बद्र" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
|||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
}} | }} | ||
{{KKCatGhazal}} | {{KKCatGhazal}} | ||
+ | {{KKVID|v=5tXm0HZxSrY}} | ||
<poem> | <poem> | ||
वही ताज है वही तख़्त है वही ज़हर है वही जाम है | वही ताज है वही तख़्त है वही ज़हर है वही जाम है |
18:58, 4 जून 2020 के समय का अवतरण
यदि इस वीडियो के साथ कोई समस्या है तो
कृपया kavitakosh AT gmail.com पर सूचना दें
कृपया kavitakosh AT gmail.com पर सूचना दें
वही ताज है वही तख़्त है वही ज़हर है वही जाम है
ये वही ख़ुदा की ज़मीन है ये वही बुतों का निज़ाम है
बड़े शौक़ से मिरा घर जला कोई आँच तुझ पे न आएगी
ये ज़बाँ किसी ने ख़रीद ली ये क़लम किसी का ग़ुलाम है
यहाँ एक बच्चे के ख़ून से जो लिखा हुआ है उसे पढ़ें
तेरा कीर्तन अभी पाप है अभी मेरा सज्दा हराम है
मैं ये मानता हूँ मिरे दिए तिरी आँधियों ने बुझा दिए
मगर एक जुगनू हवाओं में अभी रौशनी का इमाम है
मिरे फ़िक्र-ओ-फ़न तिरी अंजुमन न उरूज था न ज़वाल है
मिरे लब पे तेरा ही नाम था मिरे लब पे तेरा ही नाम है