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"मैं लौट रहा हूँ / विवेक निराला" के अवतरणों में अंतर
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जो पीठ दिखाकर लौटते हैं: | जो पीठ दिखाकर लौटते हैं: | ||
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हिंसा से विचलित होकर नहीं | हिंसा से विचलित होकर नहीं | ||
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मृत्यु के भय से नहीं। | मृत्यु के भय से नहीं। | ||
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अपने ही प्रिय युद्ध-क्षेत्र से | अपने ही प्रिय युद्ध-क्षेत्र से | ||
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अपने न पहचाने जाने की | अपने न पहचाने जाने की | ||
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नि:स्वार्थ अनन्त इच्छाओं के साथ | नि:स्वार्थ अनन्त इच्छाओं के साथ | ||
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मैं लौट रहा हूँ | मैं लौट रहा हूँ | ||
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दोनों हाथों से चेहरे को छिपाए | दोनों हाथों से चेहरे को छिपाए | ||
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लीपा-पोती करता हुआ। | लीपा-पोती करता हुआ। | ||
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20:48, 1 जुलाई 2016 के समय का अवतरण
कुछ लोग
युद्ध जीत कर लौटते हैं
कुछ वहीं मारे जाते हैं
जिनके लौटते हैं शव
कुछ ऎसे होते हैं
जो पीठ दिखाकर लौटते हैं:
किसी संग्राम से मैं लौट रहा हूँ।
मैं लौट रहा हूँ
हिंसा से विचलित होकर नहीं
मृत्यु के भय से नहीं।
अपने ही प्रिय युद्ध-क्षेत्र से
अपने न पहचाने जाने की
नि:स्वार्थ अनन्त इच्छाओं के साथ
मैं लौट रहा हूँ
दोनों हाथों से चेहरे को छिपाए
पिछले कर्मों पर
लीपा-पोती करता हुआ।