भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"उड़ी ख़बर कि शहर रोशनी में डूबा है / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=डी. एम. मिश्र | |रचनाकार=डी. एम. मिश्र | ||
− | |संग्रह= | + | |संग्रह=लेकिन सवाल टेढ़ा है / डी. एम. मिश्र |
}} | }} | ||
{{KKCatGhazal}} | {{KKCatGhazal}} |
16:02, 13 नवम्बर 2020 के समय का अवतरण
उडी़ ख़बर कि शहर रोशनी में डूबा है
गया क़रीब तो देखा कि महज़ धोखा है
बडे़ घरों की खिड़कियाँ कहाँ खुलें जल्दी
जिधर भी देखता हूँ हर तरफ़ अँधेरा है
उनके कुत्ते भी दूध पी के सो गये होंगे
मगर बच्चा बग़ल का दो दिनों से भूखा है
किसी ग़रीब की इमदाद कौन है करता
ख़याल नेक है लेकिन सवाल टेढा़ है ?
मेरी ज़बान पे ताले जडे़ ज़रूर अभी
मगर नज़र में गर्म खू़न उतर आता है
वहाँ वजी़र की बातों से फूल झरते हैं
यहाँ विकास की गंगा में रेत उड़ता है
किसी को दिल की बात भी बता नहीं सकता
यहाँ पे एक शख़्स भीड़ में अकेला है