भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"घर के अंदर रही,घर के बाहर रही/ जहीर कुरैशी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna | रचनाकार=जहीर कुरैशी }} <poem> घर के अन्दर रही, घर के बाहर रही ...) |
|||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{KKGlobal}} | {{KKGlobal}} | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
− | | | + | |रचनाकार=जहीर कुरैशी |
− | }} <poem> | + | |संग्रह=भीड़ में सबसे अलग / जहीर कुरैशी |
+ | }} | ||
+ | [[Category:ग़ज़ल]] | ||
+ | <poem> | ||
घर के अन्दर रही, घर के बाहर रही | घर के अन्दर रही, घर के बाहर रही |
16:26, 26 सितम्बर 2008 का अवतरण
घर के अन्दर रही, घर के बाहर रही
जिन्दगी की लड़ाई निरंतर रही
सत्य की चिलचिलाती हुई धूप में
एक सपनों की छतरी भी सिर पर रही
वो इधर चुप रही मैं इधर चुप रहा,
बीच में, एक दुविधा बराबर रही
रोक पाई न आँसू सहनशीलता
आँसुओं की नदी बात कहकर रही !
बीज के दोष को देखता कौन है,
उर्वरा भूमि यूँ भी अनुर्वर रही
काम आती नहीं एकतरफ़ा लगन
वो लगन ही फली, जो परस्पर रही
आज भी मोम-सा है ‘अहिल्या’ का मन
देह, शापित ‘अहिल्या’ की पत्थर रही !