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"ज़हर बो कर बहुत खुश है बहुत इतरा रहा है वो / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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+ | समझ जायेंगे कल तक लोग सारे असलियत उसकी | ||
+ | बड़े भोले हैं वो इन्सां जिन्हें बहका रहा है वो | ||
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13:00, 16 नवम्बर 2020 के समय का अवतरण
ज़हर बो कर बहुत खुश है बहुत इतरा रहा है वो
मगर किस रास्ते पर देश को ले जा रहा है वो
बड़े ही प्यार से हिंदू मुसलमां साथ रहते हैं
अब उनके दरमियां भी नफ़रतें फैला रहा है वो
हमारी दी हुई ताक़त से मालामाल हो बैठा
हमें ही चोट पहुँचाने को बल दिखला रहा है वो
अभी थोड़ी प्रतीक्षा और करनी शेष है शायद
तुम्हें जो ठीक कर देगा यकीनन आ रहा है वो
बड़ा कमज़र्फ है तहज़ीब मैख़ाने की क्या जाने
नहीं पीना अगर आता तो क्यों छलका रहा है वो
समझ जायेंगे कल तक लोग सारे असलियत उसकी
बड़े भोले हैं वो इन्सां जिन्हें बहका रहा है वो