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"बेगुनाहों को सताता हुक्मराँ भी बन रहा / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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रात को वो दिन बताता हुक्मराँ भी बन रहा
  
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सिर्फ़ सत्ता के लिए यूँ खूँ का प्यासा हो गया
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हमको आपस में लड़ाता हुक्मराँ भी बन रहा
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आदमी है आदमी की तरह जीना सीख ले
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हद भी अपनी भूल जाता हुक्मराँ भी बन रहा
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हम ग़रीबों की कमाई लूट कर ले जा रहा
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जुल्म भी हम पर ही  ढाता हुक्मराँ भी बन रहा
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क्या कसूर है उस परिंदे का कभी यह सोच तो
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तीर तू उस पर चलाता हुक्मराँ भी बन रहा
 
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13:03, 16 नवम्बर 2020 के समय का अवतरण

बेगुनाहों को सताता हुक्मराँ भी बन रहा
क्रूरता ऐसी दिखाता हुक्मराँ भी बन रहा

सब समझते हैं कि उसके दिल में काला चोर है
रात को वो दिन बताता हुक्मराँ भी बन रहा

सिर्फ़ सत्ता के लिए यूँ खूँ का प्यासा हो गया
हमको आपस में लड़ाता हुक्मराँ भी बन रहा

आदमी है आदमी की तरह जीना सीख ले
हद भी अपनी भूल जाता हुक्मराँ भी बन रहा

हम ग़रीबों की कमाई लूट कर ले जा रहा
जुल्म भी हम पर ही ढाता हुक्मराँ भी बन रहा

क्या कसूर है उस परिंदे का कभी यह सोच तो
तीर तू उस पर चलाता हुक्मराँ भी बन रहा