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"वसन्त विभ्रम / केशव शरण" के अवतरणों में अंतर
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खेतों में | खेतों में |
19:17, 28 मार्च 2011 के समय का अवतरण
खेतों में
खिली सरसों है
या हवा में लहराता पीला पल्लू ?
देखूँ भी तो क्या देखूँ ?
मेरी पलकों पर छाया तो वही है हर सू !
सुनूँ भी तो क्या सुनूँ ?
सुनूँ बस अपनी ही साँसों का सरगम
जबकि सरसरा रहे होते हैं
सरसों के फूल
हवा में मद्धम-मद्धम
समझूँ भी तो क्या समझूँ ?
कल्पना में ही होकर रह जाएगा मिलन हमारा
या मिलेंगे हम वास्तविकता में
इस बार
इस वासंतिक वाटिका में