भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"मृत्युबोध / अवतार एनगिल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
पंक्ति 7: | पंक्ति 7: | ||
<poem> | <poem> | ||
झर गई | झर गई | ||
− | सुबह की अंजुरी | + | सुबह की अंजुरी से |
गुनगुनी धूप | गुनगुनी धूप | ||
10:25, 20 अप्रैल 2010 के समय का अवतरण
झर गई
सुबह की अंजुरी से
गुनगुनी धूप
ढल चला
दोपहर की धूप में
कोमल इस्पात
रुक गई है फिर
धानी नदी की
बहती आवाज़
और टंग गई
आकाश के खेमे पर
एक कुतिया की चीख़ :