भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अपने लिए / शलभ श्रीराम सिंह" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शलभ श्रीराम सिंह |संग्रह=उन हाथों से परिचित हूँ…) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) छो ("अपने लिए / शलभ श्रीराम सिंह" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite))) |
(कोई अंतर नहीं)
|
01:44, 24 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण
पहले एक लकीर बनी
फिर रोलर घूमने लगा
याददाश्त के ऊपर।
यंत्रणा का ऐसा स्वरुप
इससे पहले कहाँ था दुनिया में?
सभ्यता का यह अभिनव दंड-विधान
मुबारक हुआ हम सब को अपने आप
शरीर के अनुसार सज़ा खोजी हमने
अपने लिए।
अपने लिए बहुत कुछ खोजा हमने
यहाँ तक कि सर्वनाश भी।
रचनाकाल : 1991, विदिशा