भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"दिल को लगती है / वली दक्कनी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) |
छो |
||
पंक्ति 7: | पंक्ति 7: | ||
दिल को लगती है दिलरुबा की अदा <br> | दिल को लगती है दिलरुबा की अदा <br> | ||
− | जी में | + | जी में बसती है खुश-अदा की अदा <br><br> |
गर्चे सब ख़ूबरू हैं ख़ूब वले <br> | गर्चे सब ख़ूबरू हैं ख़ूब वले <br> | ||
पंक्ति 18: | पंक्ति 18: | ||
हैरत-अफ़ज़ा है बेवफ़ा की अदा <br><br> | हैरत-अफ़ज़ा है बेवफ़ा की अदा <br><br> | ||
− | गुल हुये ग़र्क | + | गुल हुये ग़र्क आब-ए-शबनम में <br> |
देख उस साहिब-ए-हया की अदा <br><br> | देख उस साहिब-ए-हया की अदा <br><br> | ||
ऐ "वली" दर्द-ए-सर की दारू है <br> | ऐ "वली" दर्द-ए-सर की दारू है <br> | ||
मुझको उस संदली क़बा की अदा <br><br> | मुझको उस संदली क़बा की अदा <br><br> |
22:51, 24 दिसम्बर 2006 का अवतरण
रचनाकार: वली मोहम्मद 'वली'
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*
दिल को लगती है दिलरुबा की अदा
जी में बसती है खुश-अदा की अदा
गर्चे सब ख़ूबरू हैं ख़ूब वले
क़त्ल करती है मीरज़ा की अदा
हर्फ़-ए-बेजा बजा है गर बोलूँ
दुश्मन-ए-होश है पिया की अदा
नक़्श-ए-दीवार क्यूँ न हो आशिक़
हैरत-अफ़ज़ा है बेवफ़ा की अदा
गुल हुये ग़र्क आब-ए-शबनम में
देख उस साहिब-ए-हया की अदा
ऐ "वली" दर्द-ए-सर की दारू है
मुझको उस संदली क़बा की अदा