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"लै कै उपदेश-औ-संदेस पन ऊधौ चले / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’" के अवतरणों में अंतर
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लै कै उपदेश-औ-संदेस पन ऊधौ चले, | लै कै उपदेश-औ-संदेस पन ऊधौ चले, | ||
− | + | ::सुजस-कमाइबैं उछाह-उदगार मैं । | |
कहै रतनाकर निहारि कान्ह कातर पै, | कहै रतनाकर निहारि कान्ह कातर पै, | ||
− | आतुर भए यौं रह्यौ मन न सँभार मैं ॥ | + | ::आतुर भए यौं रह्यौ मन न सँभार मैं ॥ |
ज्ञान-गठरी की गाँठि छरकि न जान्यौ कब, | ज्ञान-गठरी की गाँठि छरकि न जान्यौ कब, | ||
− | हरैं-हरैं पूँजी सब सरकि कछार मैं । | + | ::हरैं-हरैं पूँजी सब सरकि कछार मैं । |
डार मैं तमालनि की औअर कछु बिरमानी अरु, | डार मैं तमालनि की औअर कछु बिरमानी अरु, | ||
− | कछु अरुझानी है करीरनि के झार मैं ॥22॥ | + | ::कछु अरुझानी है करीरनि के झार मैं ॥22॥ |
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09:29, 2 मार्च 2010 के समय का अवतरण
लै कै उपदेश-औ-संदेस पन ऊधौ चले,
सुजस-कमाइबैं उछाह-उदगार मैं ।
कहै रतनाकर निहारि कान्ह कातर पै,
आतुर भए यौं रह्यौ मन न सँभार मैं ॥
ज्ञान-गठरी की गाँठि छरकि न जान्यौ कब,
हरैं-हरैं पूँजी सब सरकि कछार मैं ।
डार मैं तमालनि की औअर कछु बिरमानी अरु,
कछु अरुझानी है करीरनि के झार मैं ॥22॥