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"आइ ब्रज-पथ रथ ऊधौ कौं चढ़ाइ कान्ह / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’" के अवतरणों में अंतर

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आइ ब्रज-पथ रथ ऊधौ कौं चढ़ाइ कान्ह,
 
आइ ब्रज-पथ रथ ऊधौ कौं चढ़ाइ कान्ह,
अकथ कथानि की व्यथा सौं अकुलात हैं ।
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::अकथ कथानि की व्यथा सौं अकुलात हैं ।
 
कहै रतनाकर बुझाइ कछु रोकै पाय,
 
कहै रतनाकर बुझाइ कछु रोकै पाय,
पुनि कछु ध्यान उर धाइ उरझात हैं ॥
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::पुनि कछु ध्यान उर धाइ उरझात हैं ॥
 
उसीस उसांसनि सौं बहि बहि आंसनि सौं,
 
उसीस उसांसनि सौं बहि बहि आंसनि सौं,
भूरि भरे हिय के हुलास न उरात हैं ।
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::भूरि भरे हिय के हुलास न उरात हैं ।
 
सीरे तपे विविध संदेसनि सो बातनि की,
 
सीरे तपे विविध संदेसनि सो बातनि की,
घातनि की झोंक मैं लगेई चले जात हैं ॥21॥
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::घातनि की झोंक मैं लगेई चले जात हैं ॥21॥
 
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09:29, 2 मार्च 2010 का अवतरण

आइ ब्रज-पथ रथ ऊधौ कौं चढ़ाइ कान्ह,
अकथ कथानि की व्यथा सौं अकुलात हैं ।
कहै रतनाकर बुझाइ कछु रोकै पाय,
पुनि कछु ध्यान उर धाइ उरझात हैं ॥
उसीस उसांसनि सौं बहि बहि आंसनि सौं,
भूरि भरे हिय के हुलास न उरात हैं ।
सीरे तपे विविध संदेसनि सो बातनि की,
घातनि की झोंक मैं लगेई चले जात हैं ॥21॥