भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"राधा मुख-मंजुल सुधाकर के ध्यान ही सौं / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो ()
 
पंक्ति 7: पंक्ति 7:
 
<poem>
 
<poem>
 
राधा मुख-मंजुल सुधाकर के ध्यान ही सौं,
 
राधा मुख-मंजुल सुधाकर के ध्यान ही सौं,
प्रेम रतनाकर हियैं यौं उमगत है ।
+
::प्रेम रतनाकर हियैं यौं उमगत है ।
 
त्यौं ही बिरहातप प्रचंड सौं उमंडि अति,
 
त्यौं ही बिरहातप प्रचंड सौं उमंडि अति,
उरध उसास कौ झकोर यौं जगत है ॥
+
::उरध उसास कौ झकोर यौं जगत है ॥
 
केवट विचार कौ बिचारौं पचि हारि जात,
 
केवट विचार कौ बिचारौं पचि हारि जात,
होत गुन-पाल ततकाल नभ-गत है ॥
+
::होत गुन-पाल ततकाल नभ-गत है ॥
 
करत गँभीर धीर लंगर न काज कछू,
 
करत गँभीर धीर लंगर न काज कछू,
मन कौ जहाज डगि डूबन लगत है ॥11॥
+
::मन कौ जहाज डगि डूबन लगत है ॥11॥
 
</poem>
 
</poem>

09:35, 2 मार्च 2010 के समय का अवतरण

राधा मुख-मंजुल सुधाकर के ध्यान ही सौं,
प्रेम रतनाकर हियैं यौं उमगत है ।
त्यौं ही बिरहातप प्रचंड सौं उमंडि अति,
उरध उसास कौ झकोर यौं जगत है ॥
केवट विचार कौ बिचारौं पचि हारि जात,
होत गुन-पाल ततकाल नभ-गत है ॥
करत गँभीर धीर लंगर न काज कछू,
मन कौ जहाज डगि डूबन लगत है ॥11॥