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"बहुत देर हो जाएगी तब तक / रवीन्द्र दास" के अवतरणों में अंतर

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तुम कहाँ गलत थे !
 
तुम कहाँ गलत थे !
 
 
या मैं कहाँ गलत था !
 
या मैं कहाँ गलत था !
 
 
ये ऐसे सवाल हैं जिनके जबाव का अब कोई मतलब न रहा ।
 
ये ऐसे सवाल हैं जिनके जबाव का अब कोई मतलब न रहा ।
 
 
हम छूट चुके हैं कहीं सैलाब में बह चले
 
हम छूट चुके हैं कहीं सैलाब में बह चले
 
 
अनाथ तिनकों की तरह
 
अनाथ तिनकों की तरह
 
 
बेसहारा , बेनाम, और शायद बेवजह भी
 
बेसहारा , बेनाम, और शायद बेवजह भी
 
 
नहीं करता हूँ कोई शिकायत
 
नहीं करता हूँ कोई शिकायत
 
 
कि तुमने नहीं निभाई रवायतें
 
कि तुमने नहीं निभाई रवायतें
 
 
पर यह भी सच ही है
 
पर यह भी सच ही है
 
 
कि हमारा अपना आगोश भी मज़बूरी से पट गया है
 
कि हमारा अपना आगोश भी मज़बूरी से पट गया है
 
 
मौत आने से कितनी तकलीफ होती है
 
मौत आने से कितनी तकलीफ होती है
 
 
नहीं मालूम
 
नहीं मालूम
 
 
लेकिन घर का उजड़ना तो बदतर है जिन्दा मौत से
 
लेकिन घर का उजड़ना तो बदतर है जिन्दा मौत से
 
 
कि जब तुम देखते रहते हो
 
कि जब तुम देखते रहते हो
 
 
बिखरता हुआ एक-एक तिनका
 
बिखरता हुआ एक-एक तिनका
 
 
महसूस करते हो दिल पर लगते हुए एक-एक जख्म
 
महसूस करते हो दिल पर लगते हुए एक-एक जख्म
 
 
किया होगी मैंने कोई बहुत बड़ा गुनाह
 
किया होगी मैंने कोई बहुत बड़ा गुनाह
 
 
वरना क्यों चल पड़ते थे ऐसे
 
वरना क्यों चल पड़ते थे ऐसे
 
 
उजाड़ कर अपना बसा -बसाया आशियाना !
 
उजाड़ कर अपना बसा -बसाया आशियाना !
 
 
मैं जो तुमसे कहूँ भी
 
मैं जो तुमसे कहूँ भी
 
 
काला था चाँद उस दिन का
 
काला था चाँद उस दिन का
 
 
या जुबान पर आ गया था आफत-आसमानी
 
या जुबान पर आ गया था आफत-आसमानी
 
 
या शायद किस्मत ने मेरे साथ किया कोई मजाक
 
या शायद किस्मत ने मेरे साथ किया कोई मजाक
 
 
तो क्या यकीन होगा तुम्हें !
 
तो क्या यकीन होगा तुम्हें !
 
 
गुजर चुके है महीने-महीने
 
गुजर चुके है महीने-महीने
 
 
गुजरती जा रही जिन्दगी भी
 
गुजरती जा रही जिन्दगी भी
 
 
इतने प्रदूषण के बावजूद नहीं घुटता है मेरा दम
 
इतने प्रदूषण के बावजूद नहीं घुटता है मेरा दम
 
 
गलती नहीं थी तुम्हारी
 
गलती नहीं थी तुम्हारी
 
 
इसका का एक यही मतलब निकलता है
 
इसका का एक यही मतलब निकलता है
 
 
कि उजाड़ लो अपना ही आशियाना
 
कि उजाड़ लो अपना ही आशियाना
 
 
मैं नहीं कहता कि मुझे तुम्हारा इंतजार है
 
मैं नहीं कहता कि मुझे तुम्हारा इंतजार है
 
 
नहीं , मुझे तो अफ़सोस है
 
नहीं , मुझे तो अफ़सोस है
 
 
जो कदम तुम चले हो
 
जो कदम तुम चले हो
 
 
कल तुम्हे पछताना न पड़े
 
कल तुम्हे पछताना न पड़े
 
 
और तब तक शायद देर हो जाएगी बहुत ।
 
और तब तक शायद देर हो जाएगी बहुत ।
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10:02, 20 अप्रैल 2010 के समय का अवतरण

तुम कहाँ गलत थे !
या मैं कहाँ गलत था !
ये ऐसे सवाल हैं जिनके जबाव का अब कोई मतलब न रहा ।
हम छूट चुके हैं कहीं सैलाब में बह चले
अनाथ तिनकों की तरह
बेसहारा , बेनाम, और शायद बेवजह भी
नहीं करता हूँ कोई शिकायत
कि तुमने नहीं निभाई रवायतें
पर यह भी सच ही है
कि हमारा अपना आगोश भी मज़बूरी से पट गया है
मौत आने से कितनी तकलीफ होती है
नहीं मालूम
लेकिन घर का उजड़ना तो बदतर है जिन्दा मौत से
कि जब तुम देखते रहते हो
बिखरता हुआ एक-एक तिनका
महसूस करते हो दिल पर लगते हुए एक-एक जख्म
किया होगी मैंने कोई बहुत बड़ा गुनाह
वरना क्यों चल पड़ते थे ऐसे
उजाड़ कर अपना बसा -बसाया आशियाना !
मैं जो तुमसे कहूँ भी
काला था चाँद उस दिन का
या जुबान पर आ गया था आफत-आसमानी
या शायद किस्मत ने मेरे साथ किया कोई मजाक
तो क्या यकीन होगा तुम्हें !
गुजर चुके है महीने-महीने
गुजरती जा रही जिन्दगी भी
इतने प्रदूषण के बावजूद नहीं घुटता है मेरा दम
गलती नहीं थी तुम्हारी
इसका का एक यही मतलब निकलता है
कि उजाड़ लो अपना ही आशियाना
मैं नहीं कहता कि मुझे तुम्हारा इंतजार है
नहीं , मुझे तो अफ़सोस है
जो कदम तुम चले हो
कल तुम्हे पछताना न पड़े
और तब तक शायद देर हो जाएगी बहुत ।