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"सब्ज़ मद्धम रोशनी में / परवीन शाकिर" के अवतरणों में अंतर

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सब्ज़ मद्धम रोशनी में सुर्ख़ आँचल की धनक <br>
 
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सर्द कमरे में मचलती गर्म साँसों की महक <br><br>
 
सर्द कमरे में मचलती गर्म साँसों की महक <br><br>

18:54, 25 मई 2009 का अवतरण

सब्ज़ मद्धम रोशनी में सुर्ख़ आँचल की धनक
सर्द कमरे में मचलती गर्म साँसों की महक

बाज़ूओं के सख्त हल्क़े में कोई नाज़ुक बदन
सिल्वटें मलबूस पर आँचल भी कुछ ढलका हुआ

गर्मी-ए-रुख़्सार से दहकी हुई ठंडी हवा
नर्म ज़ुल्फ़ों से मुलायम उँगलियों की छेड़ छाड़

सुर्ख़ होंठों पर शरारत के किसी लम्हें का अक्स
रेशमी बाहों में चूड़ी की कभी मद्धम धनक

शर्मगीं लहजों में धीरे से कभी चाहत की बात
दो दिलों की धड़कनों में गूँजती थी एक सदा

काँपते होंठों पे थी अल्लाह से सिर्फ़ एक दुआ
काश ये लम्हे ठहर जायें ठहर जायें ज़रा