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|रचनाकार=जाँ निसार अख़्तर
}}
[[Category:गज़ल]]{{KKCatGhazal}}<poem>ज़माना आज नहीं डगमगा के चलने का सम्भल भी जा कि अभी वक़्त है सम्भलने का
ज़माना आज नहीं डगमगा के चलने का <br>बहार आये चली जाये फिर चली आये सम्भल भी जा कि अभी वक़्त है सम्भलने मगर ये दर्द का मौसम नहीं बदलने का <br><br>
बहार ये ठीक है कि सितारों पे घूम आये चली जाये फिर चली आये <br>हैं मगर ये दर्द का मौसम नहीं बदलने किसे है सलिक़ा ज़मीं पे चलने का <br><br>
ये ठीक फिरे हैं रातों को आवारा हम तो देखा है कि सितारों पे घूम आये हैं <br>मगर किसे है सलिक़ा ज़मीं पे चलने गली गली में समाँ चाँद के निकलने का <br><br>
फिरे हैं रातों को आवारा हम तो देखा है <br>गली गली में समाँ चाँद के निकलने का <br><br> तमाम नशा-ए-हस्ती तमाम कैफ़-ए-वजूद <br>वो इक लम्हा तेरे जिस्म के पिघलने का <br><br/poem>
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