भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
चराग़-ए-
जीस्त<ref>जीवन-दीप</ref> बुझा दिल से इक धुआँ निकला।
चरागे़जीस्त<ref>जीवन-दीप</ref> बुझा दिल लगा के आग मेरे घर से इक धुआँ निकला।मेहरबाँ निकला॥
लगा के आग मेरे घर से मेहमाँ निकला॥
 तड़प के आबला-पा<ref>पाँव के छाले</ref> उठ खडे़ खड़े हुए आखिर।आख़िर।
तलाशे-यार में जब कोई कारवाँ निकला॥
लगा है दिल को अब अंजामेकार का खटका।
बहारेबहार-ए-गुल से भी इक पहलुएपहलु-ए-ख़िज़ाँ निकला॥ 
कलामे ‘यास, कलाम-ए 'यास' से दुनिया में फिर इक आग लगी।
यह कौन हज़रते ‘आतिश’ का हमज़बाँ निकला॥