भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"ज़मीन / वाज़दा ख़ान" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वाज़दा ख़ान |संग्रह=जिस तरह घुलती है काया / वाज़…)
 
(कोई अंतर नहीं)

23:13, 2 मार्च 2011 के समय का अवतरण

सतह से जुड़ी तमाम जड़े
फैलना चाहती हैं ज़मीन पर
बिना खाद पानी के ही

बस उनसे कहो सहमें / सिकुड़ें नहीं
फैलती जाएँ अमर बेल की चहुँ दिशा में

ख़ुद-ब-ख़ुद बन जाएगी तब
उनकी एक ज़मीन

फिर देखना लोगों का एक हुजूम तारीफ़ में
क़सीदे पढ़ेगा, जो आज
उनके सहमेपन की आलोचना करते हैं ।