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| |रचनाकार=तुलसीदास | | |रचनाकार=तुलसीदास |
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| + | [[Category:लम्बी रचना]] |
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− | <poem>
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− | '''पद 41 से 50 तक'''
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− | (41)
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− | कबहुँक अंब, अवसर पाइ।
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− | मेरिऔ सुधि द्याइबी, कछु करून-कथा चलाइ।1।
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− | दीन, सब अंगहीन, छीन, मलीन, अघी अघाइ।
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− | नाम लै भरै उदर एक प्रभु-दासी-दास कहाइ।2।
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− | बुझिहैं ‘सो है कौन’, कहिबी नाम दसा जनाइ।
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− | सुनत राम कृपालुके मेरी बिगरिऔ बनि जाइ।3।
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− | जानकी जगजननि जनकी किये बचन सहाइ।
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− | तरै तुलसिदास भव तव नाथ -गुन-गन-गाइ।4।
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− | (42)
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− | क्कबहुँ समय सुधि द्यायबी, मेरी मातु जानकी।
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− | जन कहाइ नाम लेत हौं, किये पन चातक ज्यों, प्यास प्रेम-पानकी।1।
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− | सरल कहाई प्रकृति आपु जानिए करूना-निधानकी।
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− | निजगुन, अरिकृत अनहितौ, दास-दोष सुरति चित रहत न दिये दानकी।2।
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− | बानि बिसारनसील है मानद अमानकी।
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− | तुलसीदास न बिसारिये, मन करम बचन जाके, सपनेहुँ गति न आनकी।3। | + | |
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− | (43)
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− | जयति
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− | सच्चिदव्यापकानंद परब्रह्म-पद विग्रह-व्यक्त लीलावतारी।
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− | विकल ब्रह्मादि, सुर, सि, संकोचवश, सिद्ध, संकोचवश, विमल गुण-गेह नर-देह -धारी।1।
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− | जयति
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− | कोशलाधीश कल्याण कोशलसुता, कुशल कैवल्य-फल चारू चारी।
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− | वेद-बोधित करम -धरम-धरनीधेनु, विप्र-सेवक साधु-मोदकारी।2।
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− | जयति
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− | ऋषि-मखपाल, शमन-सज्जन-साल, शापवश मुनिवधू-पापहारी।
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− | भंजि भवचाप, दलि दाप भूपावली, सहित भृृगुनाथ नतमाथ भारी।3।
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− | जयति
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− | धारमिक-धुर, धी रघुवीर गुरू-मातु-पितु-बंधु- वचनानुसारी।
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− | चित्रकुटाद्रि विन्ध्याद्रि दंडकविपिन, धन्यकृत पुन्यकानन-विहारी।4।
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− | जयति
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− | पाकारिसुत-काक-करतुति-फलदानि खनि गर्त गोपित विराधा।
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− | दिव्य देवी वेश देखि लखि निशिचरी जनु विडंबित करी विश्वबाधा।5।
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− | जयति
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− | खर-त्रिशिर-दूषण चतुर्दश-सहस-सुभट-मारीच-संहारकर्ता।
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− | गृन्ध्र-शबरी-भक्ति-विवश करूणासिंधु, चरित निरूपाधि, त्रिविधार्तिहर्ता ।6।
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− | जयति
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− | मद-अंध कुकबंध बधि, बालि बलशालि बधि, करन सुग्रीवराजा।
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− | सुभट मर्कट-भालु-कटक-संघट सजत, नमत पदरावणानुत निवाजा।7।
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− | जयति
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− | पाथोधि-कृत-सेतु कौतुक हेतु, काल-मन-अगम लई ललकि लंका।।
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− | सकुल,सानुज,सदल दलित दशकंठ रण, लोक-लोकप किये रहित-शंका।8।
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− | जयति
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− | सौमित्र-सीता-सचिव-सहित चले पुष्पकारूढ़ निज राजधानी।
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− | दासतुलसी मुदित अवधवासी सकल, राम भे भूप वैदेहि रानी।9।।
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− | (45)
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− | श्रीरामचंद्र कृपालु भजु मन
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− | हरण भवभय दारूणं।
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− | नवकंज लोचन ,कंज-मुख ,
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− | कर-कंज पद कंजारूणं।
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− | कंदर्प अगणित अमित छवि,
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− | नवनील नीरद सुंदरं।
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− | पट पीत मानहु तड़ित रूचि शुचि
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− | नौमि जनक सुतावरं।।
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− | भजु दीनबंधु दिनेश
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− | दानव-दैत्य-वंश-निकंदनं।
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− | रघुनंद आनँदकंद कोशलचंद
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− | दशरथ-नंदनं।।
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− | सिर मुकुट कुंडल तिलक चारू
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− | उदारू अंग विभुषणं।
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− | आजानुभुज शर-चाप-धर,
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− | संग्राम-जित-खरदूषणं।।
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− | इति वदति तुलसीदास शंकर-
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− | शेष-मुनि-मन-रंजनं।
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− | मम हृदय कंज निवास करू,
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− | कामादि खल दल गंजनं।।
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− | (46)
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− | श्रीराम सदा
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− | राम जपु, राम जपु, राम जपु, राम जपु, राम जपु, मूढ़ मन, बार बारं।
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− | सकल सौभाग्य-सुख-खानि जिय जानि शठ, मानि विश्वास वद वेदसारं।।
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− | कोशलेन्द्र नव-नीलकंजाभतनु, मदन-रिपु-कंजहृददि-चंचरीकं।
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− | जानकीरवन सुखभवन भुवनैकप्रभु, समर-भंजन, परम कारूनीकं।।
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− | दनुज-वन-धूमधुज, पीन आजानुभुज, दंड-कोदंडवर चंड बानं।
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− | अरूनकर चरण मुख नयन राजीव, गुन-अयन, बहु मयन-शोभा-निधानं।।
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− | वासनावृंद-कैरव-दिवाकर, काम-क्रोध-मद-कंज-कानन-तुषारं।ं
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− | लोभ अति मत्त नागेन्द्र पंचाननं भक्तहित हरण संसार-भारं।।
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− | केशवं, क्लेशहं, केश-वंदित पद-द्वंद्व मंदाकिनी-मूलभूतं।।
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− | सर्वदानंद-संदोह, मोहपहं, घोर-संसार-पाथोधि-पोतं।।
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− | शोक-संदेह-पाथोदपटलानिलं, पाप-पर्वत-कठिन-कुलिशरूपं।
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− | संतजन-कामधुक-धेनु, विश्रामप्रद, नाम कलि-कलुष-भंजन अनूपं।।
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− | धर्म-कल्पद्रुमाराम, हरिधाम-पभि संबलं, मूलमिदमेव एकं।
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− | भक्ति-वैराग्य-विज्ञान-शम-दान-दम, नाम आधीन साधक अनेकं।।
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− | तेन नप्तं, हुतं, दत्तमेवाखिलं, तेन सर्वं कृतं कर्मजालं।
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− | येन श्रीरामनामामृतं पानकृतमनिशमनवद्यमवलोक्य कालं।
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− | श्रवपच,खल, भिल्ल, यवनादि हरिलोकगत,
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− | नामबल विपुल मति मल न परसी।
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− | त्यागि सब आस, संत्रास, भवपास, असि निसित हरिनाम जपु दासतुलसी।।
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− | (47)
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− | ऐसी आरती राम रघुबीरकी करहि मन।
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− | हरन दुखदुंद गोबिेंद आनन्दघन।।
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− | अचरचर रूप हरि, सरबगत, सरबदा बसत, इति बासना धूप दीजै।
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− | दीप निजबोधगत-कोह-मद-मोह-तम, प्रौढ़ अभिमान चितबृत्ति छीजै।।
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− | भाव अतिशय विशद प्रवर नैवेद्य शुभ श्रीरमण परम संतोषकारी।
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− | प्रेम तांबूल गत शूल संशय सकल, विपुल भव-बासना-बीजहारी।।
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− | अशुभ-शुभकर्म-घृतपुर्ण दशवर्तिका, त्याग पावक, सतोगुण प्रकासं।
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− | भक्ति-वैराग्य-विज्ञान दीपावली, अर्पि नीराजनं जगनिवासं।।
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− | बिमल हृदि-भवन कृत शांति-पर्यक शुभ, शयन विश्राम श्रीरामराया।
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− | क्षमा-करूणा प्रमुख तत्र परिचारिका, यत्र हरि तत्र नहिं भेद-माया।।
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− | एहि आरती-निरत सनकादि, श्रुति , शेष, शिव, देवारिषि, अखिलमुनि तत्व-दरसी।
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− | करै सोइ तरै, परिहरै कामादि मल, वदति इति अमलमति-दास तुलसी।।
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− | (49)
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− | देव-
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− | दनुज-बन-दहन, गुन-गहन, गोविंद नंदादि-आनंद-दातऽविनाशी।
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− | शंभु,शिव,रूद्र,शंकर,भयंकर, भीम,घोर, तेजायतन, क्रोध-राशी।1।
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− | अनँत, भगवंत-जगदंत-अंतक-त्रास-शमन,श्रीरमन, भुवनाभिरामं।
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− | भुधराधीश जगदीश ईशान विज्ञानघन, ज्ञान-कल्यान-धामं।2।
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− | वामनाव्यक्त, पावन, परावर, विभो, प्रगट परमातमा, प्रकृति-स्वामी।
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− | चंद्रशेखर, शूलपाणि, हर, अनध, अज,अमित, अविछिन्न, वृषभेश-गामी।3।
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− | नीलजलदाभ तनु श्याम, बहु काम छवि राम राजीवलोचन कृपाला।
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− | कंबु-कर्पूर-वपु धवल, निर्मल मौलि जटा, सुर-तटिनि,सित सुमन माला।4।
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− | वसन किंजल्कधर,चक्र-सारंग-रद-कंज-कौमोदकी अति विशाला।
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− | मार-करि-मत्त- मृगराज, त्रैनैन, हर, नौमि अपहरण संसार-जाला।5।
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− | कृष्ण,करूणाभवन, दवन कालीय खल, विपुल कंसादि निर्वशकारी।
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− | त्रिपुर-मद-भंगकर,मत्तज-चर्मधर, अन्धकोरग-ग्रसन पन्नगारी।6।
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− | ब्रह्म, व्यापक, अकल, सकल, पर परमहित, ग्यान गोतीत, गुण-वृत्ति- हर्ता।
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− | सिंधुसुत-गर्व-गिरि-वज्र, गौरीश, भव, दक्ष-मख अखिल विध्वंसकर्ता।7।
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− | भक्तिप्रिय, भक्तजन-कामधुक धेनु, हरि हरण दुुर्घट विकट विपति भारी।
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− | सुखद, नर्मद, वरद,विरज, अनवद्यऽखिल, विपिन-आनंद-वीथिन-विहारी।8।
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− | रूचिर हरिशंकरी नाम-मंत्रावली द्वंद्वदुख हरनि, आनंदखानी।
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− | विष्णु-शिव-लोक-सोपान-सम सर्वदा वदति तुलसीदास विशुद्ध बानी।9।
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