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| |रचनाकार=तुलसीदास | | |रचनाकार=तुलसीदास |
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− | '''पद 251 से 260 तक'''
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− | (251)
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− | श्री राम! रावरो सुभाउ, गुन सील महिमा प्रभाउ,
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− | जान्यो हर, हनुमान, लखन, भरत।
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− | जिन्हके हिये-सुथरू राम-प्रेम-सुरतरू,
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− | लसत सरस सुख फूलत फरत।।
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− | आप माने स्वामी कै सखा सुभाइ भाइ,
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− | पति, ते सनेेह-सावधान रहत डरत।
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− | साहिब-सेवक-रीति, प्रीति-परिमिति,
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− | नीति, नेमको निबाह एक टेक न टरत।।
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− | सुक-सनकादि, प्रहलाद-नारदादि कहैं,
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− | रामकी भगति बड़ी बिरति-निरत।
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− | जाने बिनु भगति न, जानिबो तिहारे हाथ,
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− | समुझि सयाने नाथ! पगनि परत। ।
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− | छ-मत बिमत, न पुरान मत, एक मत,
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− | नेति-नेति-नेति नित निगम करत।
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− | औरनिकी कहा चली? एकै बात भलै भली,
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− | राम-नाम लिये तुलसी हू से तरत।।
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− | (253)
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− | श्री राम ! राखिये सरन, राखि आये सब दिन।
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− | बिदित त्रिलोक तिहुँ काल न दयालु दूजो,
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− | आरत-प्रनत -पाल को है प्रभु बिन।।
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− | लाले पाले, पोषे तोषे आलसी-अभागी -अघी,
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− | नाथ! पै अनाथनिसों भये न उरिन।
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− | स्वामी समरथ ऐसो, हौं होति हिये घनी घिन।।
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− | खीझि-रीझि , बिहँसि-अनख, क्यों हूँ एक बार।
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− | ‘तुलसी तू मेरो’ , बलि, कहियत किन?
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− | जाहिं सूल निरमूल, होहिं सुख अनुकूल,
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− | महाराज राम! रावरी सौं, तेहि छिन।।
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− | (254)
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− | श्री राम! रावरो नाम मेरो मातु-पितु है।
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− | सुजन-सनेही, गुरू-साहिब, सखा-सुहृदय,
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− | राम-नाम प्रेम -पन अबिचल बितु हैं। ।
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− | सतकोटि चरित अपार दधिनिधि मथि,
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− | लियो काढ़ि वामदेव नाम-घृतु है।
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− | नामको भरोसो-बल चारिहू फलको फल,
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− | सुमिरिये छाड़ि छल, भलो कृतु है। ।
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− | स्वारथ-साधक, परमारथ-दायक नाम,
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− | राम-नाम सारिखेा न और हितु है,
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− | तुलसी सुभाव कही, साँचिये परैगी सही,
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− | सीतानाथ-नाम नित चितहूको चितु है।।
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