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'''लाख दुश्मनों बाली दुनिया के बावजूद / जयप्रकाश मानस'''  क्या इसके हिज्जे ग़लत नहीं हैं? और हाँ, बहुत दिन पहले आपको ई-मेल भेजा था, शायद पढ़ा नहीं।
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'''लाख दुश्मनों बाली दुनिया के बावजूद / जयप्रकाश मानस'''  क्या इसके हिज्जे ग़लत नहीं हैं? और हाँ, बहुत दिन पहले आपको ई-मेल भेजा था, शायद पढ़ा नहीं।
 
--[[सदस्य:Sumitkumar kataria|Sumitkumar kataria]] १६:३१, ३ मार्च २००८ (UTC)
 
--[[सदस्य:Sumitkumar kataria|Sumitkumar kataria]] १६:३१, ३ मार्च २००८ (UTC)

22:02, 3 मार्च 2008 का अवतरण

KKRachna टेम्प्लेट में एक और बदलाव हुआ है। इसके बारे में चौपाल में पढे़। --Lalit Kumar ११:४७, २८ जून २००७ (UTC)

कविता संग्रह का लिंक बनाना

आदरणीय अनिल जी,

KKRachna टेम्प्लेट का प्रयोग करते समय जब हम संग्रह का लिंक बनाते हैं तो वह ऐसे बनना चाहिये:

संग्रह का नाम / कवि का नाम

उदाहरण के लिये:

|संग्रह=निरुपमा दत्त मैं बहुत उदास हूँ

लिखने की बजाये इसे कवि के नाम के साथ ऐसे लिखा जाना चाहिये:

|संग्रह=निरुपमा दत्त मैं बहुत उदास हूँ / कुमार विकल

तभी लिंक ठीक से बनेगा

सादर

--Lalit Kumar ०९:१३, १९ सितम्बर २००७ (UTC)

संपादन के संबंध में

आदरणीय अनिल जी,

अभी कुछ दिनों पूर्व आपने मुक्तिबोध के कविता संग्रह "चाँद का मुँह टेढ़ा है" में संपादन करते हुए 'चाँद' पर से

चंद्रबिंदु हटा कर चांद कर दिया है। राजकमल द्वारा प्रकाशित संग्रह में इसे "चाँद का मुँह टेढ़ा है" ही लिखा गया है। मैं

प्रायः कविता संग्रह में प्रकाशित पाठ के अनुरूप ही कविताएँ टंकित कर काव्यकोश में डालता हूँ।

वैसे सही-ग़लत क्या है आप मुझसे ज़्यादा जानते होंगे, क्योंकि मेरा हिन्दी के व्याकरण का अध्ययन नहीं के बराबर

है। काव्यकोश के वर्तनी संबंधी दिशा निर्देशों में भी चाँद पर चंद्रबिंदु ही लगाने का उल्लेख है। मुझे भी लगता है कि

यदि चाँद से ही चंद्रबिंदु छीन लिया जाएगा तो वह बेचारा कहाँ जाएगा। उचित मार्ग दर्शन की अपेक्षा है।--Hemendrakumarrai ११:५५, १८ जनवरी २००८ (UTC)

लाख दुश्मनों बाली दुनिया के बावजूद / जयप्रकाश मानस क्या इसके हिज्जे ग़लत नहीं हैं? और हाँ, बहुत दिन पहले आपको ई-मेल भेजा था, शायद पढ़ा नहीं। --Sumitkumar kataria १६:३१, ३ मार्च २००८ (UTC)