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"गीतावली अयोध्याकाण्ड पद 26 से 35/पृष्ठ 1" के अवतरणों में अंतर

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'''(26)'''
  
जबतें लै मुनि सङ्ग सिधाए |
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कैसे पितु-मातु, कैसे ते प्रिय-परिजन हैं ?
राम लखनके समाचार, सखि  तबतें कछुअ न पाए ||
+
जगजलधि ललाम, लोने लोने, गोरे-स्याम,
 +
जोन पठए हैं ऐसे बालकनि बन हैं ||
  
बिनु पानही गमन, फल भोजन, भूमि सयन तरुछाहीं |
+
रुपके न पारावार, भूपके कुमार मुनि-बेष,
सर-सरिता जलपान, सिसुनके सँग सुसेवक नाहीं ||
+
देखत लोनाई लघु लागत मदन हैं |
 +
सुखमाकी मूरति-सी साथ निसिनाथ-मुखी,
 +
नखसिख अंग सब सोभाके सदन हैं ||
  
कौसिक परम कृपालु परमहित, समरथ, सुखद, सुचाली |
+
पङ्कज-करनि चाप, तीर-तरकस कटि,
बालक सुठि सुकुमार सकोची, समुझि सोच मोहि आली ||
+
सरद-सरोजहुतें सुन्दर चरन हैं |
 +
सीता-राम-लषन निहारि ग्रामनारि कहैं,
 +
हेरि, हेरि, हेरि! हेली हियके हरन हैं ||
  
बचन सप्रेम सुमित्राके सुनि सब सनेह-बस रानी |
+
प्रानहूके प्रानसे, सुजीवनके जीवनसे,
तुलसी आइ भरत तेहि औसर कही सुमङ्गल बानी ||
+
प्रेमहूके प्रेम, रङ्क कृपिनके धन हैं |
 +
तुलसीके लोचन-चकोरके चन्द्रमासे,
 +
आछे मन-मोर चित चातकके घन हैं ||
  
 
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16:20, 4 जून 2011 के समय का अवतरण

(26)

कैसे पितु-मातु, कैसे ते प्रिय-परिजन हैं ?
जगजलधि ललाम, लोने लोने, गोरे-स्याम,
जोन पठए हैं ऐसे बालकनि बन हैं ||

रुपके न पारावार, भूपके कुमार मुनि-बेष,
देखत लोनाई लघु लागत मदन हैं |
सुखमाकी मूरति-सी साथ निसिनाथ-मुखी,
नखसिख अंग सब सोभाके सदन हैं ||

पङ्कज-करनि चाप, तीर-तरकस कटि,
सरद-सरोजहुतें सुन्दर चरन हैं |
सीता-राम-लषन निहारि ग्रामनारि कहैं,
हेरि, हेरि, हेरि! हेली हियके हरन हैं ||

प्रानहूके प्रानसे, सुजीवनके जीवनसे,
प्रेमहूके प्रेम, रङ्क कृपिनके धन हैं |
तुलसीके लोचन-चकोरके चन्द्रमासे,
आछे मन-मोर चित चातकके घन हैं ||