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− | + | कैसे पितु-मातु, कैसे ते प्रिय-परिजन हैं ? | |
− | + | जगजलधि ललाम, लोने लोने, गोरे-स्याम, | |
+ | जोन पठए हैं ऐसे बालकनि बन हैं || | ||
− | + | रुपके न पारावार, भूपके कुमार मुनि-बेष, | |
− | + | देखत लोनाई लघु लागत मदन हैं | | |
+ | सुखमाकी मूरति-सी साथ निसिनाथ-मुखी, | ||
+ | नखसिख अंग सब सोभाके सदन हैं || | ||
− | + | पङ्कज-करनि चाप, तीर-तरकस कटि, | |
− | + | सरद-सरोजहुतें सुन्दर चरन हैं | | |
+ | सीता-राम-लषन निहारि ग्रामनारि कहैं, | ||
+ | हेरि, हेरि, हेरि! हेली हियके हरन हैं || | ||
− | + | प्रानहूके प्रानसे, सुजीवनके जीवनसे, | |
− | + | प्रेमहूके प्रेम, रङ्क कृपिनके धन हैं | | |
+ | तुलसीके लोचन-चकोरके चन्द्रमासे, | ||
+ | आछे मन-मोर चित चातकके घन हैं || | ||
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16:20, 4 जून 2011 के समय का अवतरण
(26)
कैसे पितु-मातु, कैसे ते प्रिय-परिजन हैं ?
जगजलधि ललाम, लोने लोने, गोरे-स्याम,
जोन पठए हैं ऐसे बालकनि बन हैं ||
रुपके न पारावार, भूपके कुमार मुनि-बेष,
देखत लोनाई लघु लागत मदन हैं |
सुखमाकी मूरति-सी साथ निसिनाथ-मुखी,
नखसिख अंग सब सोभाके सदन हैं ||
पङ्कज-करनि चाप, तीर-तरकस कटि,
सरद-सरोजहुतें सुन्दर चरन हैं |
सीता-राम-लषन निहारि ग्रामनारि कहैं,
हेरि, हेरि, हेरि! हेली हियके हरन हैं ||
प्रानहूके प्रानसे, सुजीवनके जीवनसे,
प्रेमहूके प्रेम, रङ्क कृपिनके धन हैं |
तुलसीके लोचन-चकोरके चन्द्रमासे,
आछे मन-मोर चित चातकके घन हैं ||