भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"कहने को तो वे हमपे मेहरबान बहुत हैं / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) |
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|संग्रह=हर सुबह एक ताज़ा गुलाब / गुलाब खंडेलवाल | |संग्रह=हर सुबह एक ताज़ा गुलाब / गुलाब खंडेलवाल | ||
}} | }} | ||
+ | [[category: ग़ज़ल]] | ||
<poem> | <poem> | ||
पंक्ति 12: | पंक्ति 13: | ||
हैं नाम के ही शहर ये, वीरान बहुत हैं | हैं नाम के ही शहर ये, वीरान बहुत हैं | ||
− | + | ख़ामोश पड़े दिल को तड़पना सीखा दिया | |
हम पर किसी के प्यार के अहसान बहुत हैं | हम पर किसी के प्यार के अहसान बहुत हैं | ||
पंक्ति 20: | पंक्ति 21: | ||
काँटों का ताज कौन पहनता है यह, गुलाब! | काँटों का ताज कौन पहनता है यह, गुलाब! | ||
माना कि खेल प्यार के आसान बहुत हैं | माना कि खेल प्यार के आसान बहुत हैं | ||
− | |||
− | |||
<poem> | <poem> |
08:17, 2 जुलाई 2011 का अवतरण
कहने को तो वे हमपे मेहरबान बहुत हैं
फिर भी हमारे हाल से अनजान बहुत हैं
क्या किससे पूछिए कि जहां मुँह सिये हों लोग
हैं नाम के ही शहर ये, वीरान बहुत हैं
ख़ामोश पड़े दिल को तड़पना सीखा दिया
हम पर किसी के प्यार के अहसान बहुत हैं
वे भाँप ही लेते हैं निगाहों का हर सवाल
वैसे तो और बातों में नादान बहुत हैं
काँटों का ताज कौन पहनता है यह, गुलाब!
माना कि खेल प्यार के आसान बहुत हैं