भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"ख़्वाब समझें कि वाक़या समझें / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह=हर सुबह एक ताज़ा गुलाब / …) |
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 16: | पंक्ति 16: | ||
हँस के बोले कि जो कहा, समझें | हँस के बोले कि जो कहा, समझें | ||
− | एक | + | एक गर्दिश से दूसरी गर्दिश |
ज़िन्दगी, बस ये सिलसिला समझें | ज़िन्दगी, बस ये सिलसिला समझें | ||
04:38, 4 जुलाई 2011 का अवतरण
ख़्वाब समझें कि वाक़या समझें
तू ही बतला कि तुझको क्या समझें
तू समझता रहे हमें कुछ भी
हम तुझे क्यों न दिलरुबा समझें
पूछा उनसे कि आप चुप क्यों हैं
हँस के बोले कि जो कहा, समझें
एक गर्दिश से दूसरी गर्दिश
ज़िन्दगी, बस ये सिलसिला समझें
तितलियाँ मुँह फिरा रही हैं, गुलाब!
अब है बदली हुई हवा, समझें