भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"आंख में उगती मूंछें / एम० के० मधु" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=एम० के० मधु
 
|रचनाकार=एम० के० मधु
|संग्रह=बुतों के शहर में
+
|संग्रह=बुतों के शहर में / एम० के० मधु
 
}}
 
}}
 +
{{KKCatKavita‎}}
 
<poem>
 
<poem>
 
एक परी की तरह
 
एक परी की तरह

22:12, 9 जुलाई 2011 के समय का अवतरण

एक परी की तरह
वह रोज़ रूबरू होती है
धूप और छांव के गोले
पैरों से उड़ाती हुई

देखते-देखते
उसकी रूपहली आंखों में
कड़ी-कड़ी मूंछें उगने लगती हैं
एक औघड़ की तरह
मैं तटस्थ भाव में
अंधेरा ओढ़ लेता हूं

उसकी मूंछें मेरे अंधेरे से
ज़्यादा स्याह हो जाती हैं
एक हिरण की तलाश करने लगता हूं
ताकि अंधेरे से जल्द बाहर निकल सकूं।