भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"जासों प्रीति ताहि निठुराई / घनानंद" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=घनानंद }} :::'''कवित्त'''<br><br> जासों प्रीति ताहि निठुराई सों न...) |
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) छो |
||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=घनानंद | |रचनाकार=घनानंद | ||
}} | }} | ||
+ | [[Category:कवित्त]] | ||
+ | |||
:::'''कवित्त'''<br><br> | :::'''कवित्त'''<br><br> | ||
जासों प्रीति ताहि निठुराई सों निपट नेह,<br> | जासों प्रीति ताहि निठुराई सों निपट नेह,<br> |
15:45, 7 जुलाई 2007 का अवतरण
- कवित्त
- कवित्त
जासों प्रीति ताहि निठुराई सों निपट नेह,
कैसे करि जिय की जरनि सो जताइये।
महा निरदई दई कैसें कै जिवाऊँ जीव,
बेदन की बढ़वारि कहाँ लौं दुराइयै।
दुख को बखान करिबै कौं रसना कै होति,
ऐपै कहूँ बाको मुख देखन न पाइयै।
रैन दिन चैन को न लेस कहूँ पैये भाग,
आपने ही ऐसे दोष काहि धौं लगाइयै।। 5 ।।