भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"जो रोते हैं ऐसी ही बातों में आप / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह= सौ गुलाब खिले / गुलाब खं…) |
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 14: | पंक्ति 14: | ||
वे बातें जिन्हें हम छिपाया किये | वे बातें जिन्हें हम छिपाया किये | ||
− | बता ही | + | बता ही गये बातों-बातों में आप |
उमीदें तो दिल की बुझीं इस तरह | उमीदें तो दिल की बुझीं इस तरह | ||
− | + | दिये बुझते हैं जैसे रातों में आप | |
चुभाये हैं किसने ये काँटे, गुलाब! | चुभाये हैं किसने ये काँटे, गुलाब! | ||
खड़े हैं शहीदों की पाँतों में आप | खड़े हैं शहीदों की पाँतों में आप | ||
<poem> | <poem> |
01:20, 23 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
जो रोते हैं ऐसी ही बातों में आप
कहाँ मुँह छिपायेंगे रातों में आप
हमें अपने ही हाल पर छोड़ दें
चले जायँ अब अपनी घातों में आप
वे बातें जिन्हें हम छिपाया किये
बता ही गये बातों-बातों में आप
उमीदें तो दिल की बुझीं इस तरह
दिये बुझते हैं जैसे रातों में आप
चुभाये हैं किसने ये काँटे, गुलाब!
खड़े हैं शहीदों की पाँतों में आप