भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"भूडोल / बसन्तजीत सिंह हरचंद" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बसन्तजीत सिंह हरचंद |संग्रह= }} {{KKCatKavit...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

20:09, 12 नवम्बर 2011 के समय का अवतरण

नूतन परिवर्तन से सब थरथरायेगा ।
भूडोल आयेगा , भूडोल आयेगा ।

विद्रोही मंथन का
धधक रहा लावा ज्वल उमड़ - घुमड़ उबला है ,
भीतर ही भीतर जो
आन्तर में घर्षण से उद्वेलित उछला है ;
उच्च अहंकारों के
शैलों के चट्टानी वक्षस को फोड़ेगा ,
महलों की नीवों के दृढ प्रस्तर तोड़ेगा ;
वसुधा को फाड़ेगा,
जग डगमगाएगा ।
भूडोल आयेगा , भूडोल आयेगा ।।

जनता की छाती पर पद रख जो अकड़े हैं ,
भवन - शिखर गर्वित शिर जितने ये खड़े है ,
टूट - टूट बिखरेंगे ;
पैरों में गिरेंगे ।
फटती धरती की दरारों के खुले मुख ,
निगल इन्हें खायेंगे ।
अत्याचारों के दृढ पाषाणी महानगर ,
नीचे धंस जायेंगे ;
शोषण ढह जाएगा ;
भूडोल आयेगा , भूडोल आयेगा ।
आयेगा निश्चय ही भूडोल आयेगा ।।

(अग्निजा ,१९७८)