"ताँका-1-16 / भावना कुँअर" के अवतरणों में अंतर
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होकर फिर दूर | होकर फिर दूर | ||
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बहुत ही सलौना | बहुत ही सलौना | ||
मासूम मृगछौना | मासूम मृगछौना | ||
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लगी जो प्रीत | लगी जो प्रीत | ||
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भूल गई जग की | भूल गई जग की | ||
रिवाज और रीत | रिवाज और रीत | ||
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हो गई भोर | हो गई भोर | ||
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छिपकर बैठा है | छिपकर बैठा है | ||
मेरे मन का मोर | मेरे मन का मोर | ||
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सह न पाया | सह न पाया | ||
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लगते तन पे ज्यूँ | लगते तन पे ज्यूँ | ||
आग लिपटे कोड़े | आग लिपटे कोड़े | ||
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अकेलापन | अकेलापन | ||
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अब तक है याद | अब तक है याद | ||
सौगात सूनापन | सौगात सूनापन | ||
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8. | 8. | ||
फेंकने लगा | फेंकने लगा | ||
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सूरज महाराज | सूरज महाराज | ||
अब आ जाओ बाज | अब आ जाओ बाज | ||
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मुश्किल बड़ा | मुश्किल बड़ा | ||
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जो निभाए साथ,ये | जो निभाए साथ,ये | ||
काँटों भरी डगर | काँटों भरी डगर | ||
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10. | 10. | ||
फूल औ’ पत्ते | फूल औ’ पत्ते | ||
पंक्ति 65: | पंक्ति 74: | ||
डर के जब दौड़ें | डर के जब दौड़ें | ||
कहलाएँ भगौड़े | कहलाएँ भगौड़े | ||
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11. | 11. | ||
हमेशा दिया | हमेशा दिया | ||
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उफ़ बिना किए ही | उफ़ बिना किए ही | ||
ये जीवन अनोखा | ये जीवन अनोखा | ||
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12. | 12. | ||
भागती रही | भागती रही | ||
पंक्ति 77: | पंक्ति 88: | ||
उम्मीद के सहारे | उम्मीद के सहारे | ||
अपनी आँखे मींचे | अपनी आँखे मींचे | ||
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13. | 13. | ||
चिड़िया बोली | चिड़िया बोली | ||
पंक्ति 83: | पंक्ति 95: | ||
भरा मिठास से यूँ | भरा मिठास से यूँ | ||
ज्यूँ मिसरी हो घोली | ज्यूँ मिसरी हो घोली | ||
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14. | 14. | ||
अभागा मन | अभागा मन | ||
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कितनी दूर | कितनी दूर | ||
इस जहाँ से भागे | इस जहाँ से भागे | ||
− | टूटे,नेह के धागे | + | टूटे, नेह के धागे |
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15. | 15. | ||
अलसाया -सा | अलसाया -सा | ||
पंक्ति 95: | पंक्ति 109: | ||
खोल न पाए पंछी | खोल न पाए पंछी | ||
फिर अपनी पाँखें | फिर अपनी पाँखें | ||
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16. | 16. | ||
जीवन भर | जीवन भर | ||
पंक्ति 101: | पंक्ति 116: | ||
खोजती थी हमेशा | खोजती थी हमेशा | ||
उजाले की किरण | उजाले की किरण | ||
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11:13, 9 दिसम्बर 2011 का अवतरण
1.
सालता रहा
सदियों तक दुख
परछाई-सा
होकर फिर दूर
भागता रहा सुख
2.
भूली थी आँखे
पलकें झपकना
देखा था जब
यूँ मैया यशोदा ने
पालने में ललना
3.
भरे कुलाँचे
निर्रथक प्रयास
बड़ा उदास
बहुत ही सलौना
मासूम मृगछौना
4.
लगी जो प्रीत
मेरे मन के मीत
भई बावरी
भूल गई जग की
रिवाज और रीत
5.
हो गई भोर
गुनगुनाते पंछी
चारों ही ओर
छिपकर बैठा है
मेरे मन का मोर
6.
सह न पाया
ये कोमल शरीर
लू के थपेड़े
लगते तन पे ज्यूँ
आग लिपटे कोड़े
7.
अकेलापन
हमेशा रहा साथ
वो बचपन
अब तक है याद
सौगात सूनापन
8.
फेंकने लगा
आग से भरा गोला
चेहरा भोला
सूरज महाराज
अब आ जाओ बाज
9.
मुश्किल बड़ा
जीवन का सफ़र
मिलता नहीं
जो निभाए साथ,ये
काँटों भरी डगर
10.
फूल औ’ पत्ते
देख के पतझर
यूँ बेतहाशा
डर के जब दौड़ें
कहलाएँ भगौड़े
11.
हमेशा दिया
अपनों ने ही धोखा
मैं भी जी गई
उफ़ बिना किए ही
ये जीवन अनोखा
12.
भागती रही
परछाई के पीछे
जागती रही
उम्मीद के सहारे
अपनी आँखे मींचे
13.
चिड़िया बोली
झूम उठी वादियाँ
वातावरण
भरा मिठास से यूँ
ज्यूँ मिसरी हो घोली
14.
अभागा मन
है सहारा तलाशे
कितनी दूर
इस जहाँ से भागे
टूटे, नेह के धागे
15.
अलसाया -सा
मलता था सूरज
उनींदी आँखें
खोल न पाए पंछी
फिर अपनी पाँखें
16.
जीवन भर
आतंक के साये में
जीते हुए भी
खोजती थी हमेशा
उजाले की किरण