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/* इस विधा का काब्य अनुशासन */
* अनेक हाइकुकार एक ही वाक्य को 5-7-5 वर्ण क्रम में तोड़कर कुछ भी लिख देते हैं और उसे हाइकु कहने लगते हैं। यह सरासर गलत है, और हाइकु के नाम पर स्वयं को छलावे में रखना मात्र है।
* हाइकु कविता में 5-7-5 का अनुशासन तो रखना ही है, क्योंकि यह नियम शिथिल कर देने से छन्द की दृष्टि से अराजकता की स्थिति आ जाएगी।
* इस संबंध में श्रीयुत डा० ब्योम जी का मानना है कि हिन्दी अपनी बात कहने के लिये अनेक प्रकार के छंदों का प्रचलन है अतः उपर्युक्त अनुशासन से भिन्न प्रकार से लिखी गयी पंक्तियों को हाइकु न कहकर मुक्त छंद अथवा [[क्षणिका]] ही कहना चाहिये।
* वास्तव में हाइकु का मूल स्वरूप कम शब्दों में ‘घाव करें गंभीर ’ की कहावत को चरितार्थ करना ही है। अतः शब्दों के अनुशासन से इतर लिखी गयी रचना को हाइकु कहकर संबोधित करना उसके मूल स्वरूप के साथ छेड़छाड ही कहा जायेगा।
प्रकृति के भावप्रवण चित्रण हेतु हाइकु एक सशक्त विधा है ।