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"मुक्ति की आकांक्षा / सर्वेश्वरदयाल सक्सेना" के अवतरणों में अंतर

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चिडि़या को लाख समझाओ
 
चिडि़या को लाख समझाओ
 
 
कि पिंजड़े के बाहर
 
कि पिंजड़े के बाहर
 
 
धरती बहुत बड़ी है, निर्मम है,
 
धरती बहुत बड़ी है, निर्मम है,
 
 
वहॉं हवा में उन्‍हें
 
वहॉं हवा में उन्‍हें
 
 
अपने जिस्‍म की गंध तक नहीं मिलेगी।
 
अपने जिस्‍म की गंध तक नहीं मिलेगी।
 
 
यूँ तो बाहर समुद्र है, नदी है, झरना है,
 
यूँ तो बाहर समुद्र है, नदी है, झरना है,
 
 
पर पानी के लिए भटकना है,
 
पर पानी के लिए भटकना है,
 
 
यहॉं कटोरी में भरा जल गटकना है।
 
यहॉं कटोरी में भरा जल गटकना है।
 
 
बाहर दाने का टोटा है,
 
बाहर दाने का टोटा है,
 
 
यहॉं चुग्‍गा मोटा है।
 
यहॉं चुग्‍गा मोटा है।
 
 
बाहर बहेलिए का डर है,
 
बाहर बहेलिए का डर है,
 
 
यहॉं निर्द्वंद्व कंठ-स्‍वर है।
 
यहॉं निर्द्वंद्व कंठ-स्‍वर है।
 
 
फिर भी चिडि़या  
 
फिर भी चिडि़या  
 
 
मुक्ति का गाना गाएगी,
 
मुक्ति का गाना गाएगी,
 
 
मारे जाने की आशंका से भरे होने पर भी,
 
मारे जाने की आशंका से भरे होने पर भी,
 
 
पिंजरे में जितना अंग निकल सकेगा, निकालेगी,
 
पिंजरे में जितना अंग निकल सकेगा, निकालेगी,
 
 
हरसूँ ज़ोर लगाएगी
 
हरसूँ ज़ोर लगाएगी
 
 
और पिंजड़ा टूट जाने या खुल जाने पर उड़ जाएगी।
 
और पिंजड़ा टूट जाने या खुल जाने पर उड़ जाएगी।

11:30, 15 अप्रैल 2013 का अवतरण

चिडि़या को लाख समझाओ
कि पिंजड़े के बाहर
धरती बहुत बड़ी है, निर्मम है,
वहॉं हवा में उन्‍हें
अपने जिस्‍म की गंध तक नहीं मिलेगी।
यूँ तो बाहर समुद्र है, नदी है, झरना है,
पर पानी के लिए भटकना है,
यहॉं कटोरी में भरा जल गटकना है।
बाहर दाने का टोटा है,
यहॉं चुग्‍गा मोटा है।
बाहर बहेलिए का डर है,
यहॉं निर्द्वंद्व कंठ-स्‍वर है।
फिर भी चिडि़या
मुक्ति का गाना गाएगी,
मारे जाने की आशंका से भरे होने पर भी,
पिंजरे में जितना अंग निकल सकेगा, निकालेगी,
हरसूँ ज़ोर लगाएगी
और पिंजड़ा टूट जाने या खुल जाने पर उड़ जाएगी।