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"ख़त / पवन कुमार" के अवतरणों में अंतर

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क्या सोच के
 
क्या सोच के
 
तेरे ख़त
 
तेरे ख़त

08:40, 27 अप्रैल 2013 के समय का अवतरण

जाने
क्या सोच के
तेरे ख़त
कल
नदी में
बहाये थे,
ख़त तो
काग“ज“ के थे
गल गए
बह गए
मगर
वो सारे हफर्’ जो
उन पर तूने
लिखे थे
वो सब
अब तक
दरिया में
तैर रहे हैं।