भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"लाना होगा इंकलाब / लालित्य ललित" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लालित्य ललित |संग्रह=चूल्हा उदास ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
 
पंक्ति 6: पंक्ति 6:
 
{{KKCatKavita‎}}
 
{{KKCatKavita‎}}
 
<Poem>
 
<Poem>
 
 
बलात्कार पीड़िता का  
 
बलात्कार पीड़िता का  
 
भविष्य क्या है
 
भविष्य क्या है
पंक्ति 14: पंक्ति 13:
 
कुलच्छनी, कमीनी
 
कुलच्छनी, कमीनी
 
कुलटा है जी
 
कुलटा है जी
हम मां बेटी वाले लोग हैं
+
हम माँ बेटी वाले लोग हैं
 
समाज में इज़्ज़त है
 
समाज में इज़्ज़त है
 
अड़ोसी ने पड़ोसी से कहा
 
अड़ोसी ने पड़ोसी से कहा
पंक्ति 28: पंक्ति 27:
 
तीसरी मंजिल से
 
तीसरी मंजिल से
 
छलांग लगा दी
 
छलांग लगा दी
मां-बाप जीते जी मर - गए
+
मां-बाप जीते जी मर गए
 
अपराधी भयमुक्त
 
अपराधी भयमुक्त
 
नील गगन में खुले  
 
नील गगन में खुले  
पंक्ति 79: पंक्ति 78:
 
अंधेरे से, दुष्टों से
 
अंधेरे से, दुष्टों से
 
लाओ सवेरा
 
लाओ सवेरा
गली-गली ।
+
गली-गली।
+
 
</Poem>
 
</Poem>

09:16, 12 अगस्त 2013 के समय का अवतरण

बलात्कार पीड़िता का
भविष्य क्या है
कभी जानने की
कोशिश की किसी ने
हमें क्या पड़ी है !
कुलच्छनी, कमीनी
कुलटा है जी
हम माँ बेटी वाले लोग हैं
समाज में इज़्ज़त है
अड़ोसी ने पड़ोसी से कहा
लेकिन शर्मा जी
सुना है सामूहिक बलात्कार था
नहीं जी अपनी इच्छा से गई थी
हमें तो पहले ही शक था
मॉड बनती थी !
अब पता चला
कहने वाले बक गए
सुबकती रही छात्रा का -
दर्द कोई जान न पाया
तीसरी मंजिल से
छलांग लगा दी
मां-बाप जीते जी मर गए
अपराधी भयमुक्त
नील गगन में खुले
आम घूम रहे हैं
मानवाधिकार आयोग
महिला संगठन
कैंडिल लाइट
नेट पर प्रचार
‘हम एक हैं’ का मचता शोर
धीरे-धीरे शोर में लुप्त -
हुआ आरूषि हत्या कांड
सौम्या हत्या कांड
या यूं कह लीजिए
कि ये फ़ेहरिस्त इतनी -
लंबी है कि कुछ हो ही -
नहीं सकता
राजस्थान का भंवरी कांड
बाज़ार में बेपर्दा होते -
रिश्ते-नातों के नाजु़क -
पल जिम्मेवार कौन हैं ?
हम सब है जो सच्चाई से मुंह -
मोड़ चुके हैं
भरे-पूरे परिवार के
मुखिया होने पर
भी अशक्त हैं जिनके मुंह से
ज़बान चलाने के -
लिए खुलती है
सामने आने के लिए नहीं
गली-शहर, गांव दहलीज
में रुस्वा हो रही लड़की
महिला, विवाहिता या कामकाजी
ख़ामोश हैं चुप हैं
बाहर आना नहीं चाहती
लोग क्या कहेंगे
अरे इस दुविधा से
बाहर तो निकलो
एक साथ क़दम तो बढ़ाओ
ज़माना तुम्हारे साथ है
अब किसी द्रौपदी का
चीर हरण न होगा
एकता में बल है
औरत अगर ठान ले तो
दीवार चिनवा सकती है तो
दीवार गिरवा भी सकती है
चाहे कितनी मजबूत हो दीवार
अब तुम घबराना नहीं
मत घबराना
अब आया है ज़माना
जागो-जागो करो मुक़ाबला
अंधेरे से, दुष्टों से
लाओ सवेरा
गली-गली।