भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"दरद के आँसू / बैद्यनाथ पाण्डेय ‘कोमल’" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बैद्यनाथ पाण्डेय 'कोमल' |अनुवादक= |...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
16:01, 6 सितम्बर 2013 के समय का अवतरण
दरद आँसू बन के आइल।
दिन के चैन न रात के निंदिया;
याद जगावे रहि-रहि बिंदिया;
हाय पिया के बिरह-व्यथा से
देहिया पियराइल।
हँसल बसन्ती पतझड़ बीतल;
चमके रंग गुलाबी पल-पल;
झरल बिरिछिया के डालन पर
पतई लहराइल।
तज के गगन बदरिया भागल,
रतिया में मेला बा लागल,
धरती से नभ तक चानी के
लहंगा फहराइल।
रंग चढ़ल मस्ती के सब पर,
बाएँ-दहिने, नीचे-ऊपर,
कोइल के ‘कुहू’ ‘कुहू’ से
मनवाँ मधुआइल।
दरद आँसू बन के आइल।