भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"भ्रम / प्रताप सहगल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रताप सहगल |अनुवादक= |संग्रह=आदि...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

10:50, 14 अक्टूबर 2013 के समय का अवतरण

बड़ा मुश्किल लगता है
सचमुच के पहाड़ से टकराना
पहाड़ पथरीला हो या
कच्चा
मुश्किल लगता है टकराना
पहाड़ पिता हो
या सत्ता
पत्नी हो या बच्चा
सामना होते ही/बदल जाती हैं
योजनाएं.
दरअसल यही है
हमारी असलियत।
हम मुट्ठियां तान
हवा में उछालते हैं
हर असली पहाड़ से कतरा
बना लेते हैं घास के पहाड़
तोड़ते हैं उन्हें ही बार-बार
और खुद को

महान समझने का
भ्रम पालते हैं।

1983