भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सड़क पर मजूरणी / प्रमोद कुमार शर्मा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह=बोली तूं सुरतां / प्रमोद कुमार शर्मा
 
|संग्रह=बोली तूं सुरतां / प्रमोद कुमार शर्मा
 
}}
 
}}
[[Category:मूल राजस्थानी भाषा]]
 
 
{{KKCatKavita‎}}
 
{{KKCatKavita‎}}
<Poem>
+
{{KKCatRajasthaniRachna}}
 
+
<poem>
 
तूं
 
तूं
 
जुगां सूं
 
जुगां सूं
पंक्ति 36: पंक्ति 35:
 
वठै तांई लैज्या
 
वठै तांई लैज्या
 
जठै तांई नीं पुगै आभै रो सूरज !
 
जठै तांई नीं पुगै आभै रो सूरज !
 
 
</Poem>
 
</Poem>

14:08, 16 अक्टूबर 2013 के समय का अवतरण

तूं
जुगां सूं
लाग री है
सड़का पर फोड़ण दग्गड़ !
साची
तूं भौत बड़ी है
ईं पीलै तावड़े अर
अळसायैड़े सूरज स्यूं।
क्यूं कै, थारै दुखा री गिरमी
इण री तपत सूं ज्यादा है।
सांची बता !
कठै‘ई थाने इण गिरमी स्यूं
परेम तो नीं हुग्यो ?
जे हां:
तो बांट आ दुखां नै
वां रै साथै
जिका
सी‘ल अर अंधारै मांय जी रैया है।
अर दिनोदिन आपरौ ही
लोई पी रैया है !
जिका रा टाबर कूटळै मांय
सोधै है रोटयां
अर सोधता-सोधता
कूटळै मांय ई रळ जावै है।
म्है चाऊं:
तूं थारै दुखां रो सूरज,
वठै तांई लैज्या
जठै तांई नीं पुगै आभै रो सूरज !