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50.
छल शरीर घोड़ाक पीठ पर मन केयूरक संगहि गेल
इन्द्रायुधक मार्ग परिचित छल ई नहि सोचथि मुड़बा लेल।
सेवक आबि पकड़लक घोड़ा तय उतरवा केर छल ठाम
देखल चौकि भवन लग नयलहुँ कहुना उतरि कयल विश्राम॥
51.
राजकुमारक हाल ई क्यो नहि बुझलक आन
प्रजा सकल रंजन करथि किछ छन दय अवधान॥