"अंदेशे / कैफ़ी आज़मी" के अवतरणों में अंतर
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|रचनाकार=कैफ़ी आज़मी | |रचनाकार=कैफ़ी आज़मी | ||
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− | रूह बेचैन है इक दिल की अज़ीयत क्या है | + | {{KKCatGeet}} |
− | दिल ही शोला है तो ये सोज़-ए-मोहब्बत क्या है | + | <poem> |
− | वो मुझे भूल गई इसकी शिकायत क्या है | + | रूह बेचैन है इक दिल की अज़ीयत क्या है |
− | रंज तो ये है के रो-रो के भुलाया होगा | + | दिल ही शोला है तो ये सोज़-ए-मोहब्बत क्या है |
+ | वो मुझे भूल गई इसकी शिकायत क्या है | ||
+ | रंज तो ये है के रो-रो के भुलाया होगा | ||
− | वो कहाँ और कहाँ काहिफ़-ए-ग़म सोज़िश-ए-जाँ | + | वो कहाँ और कहाँ काहिफ़-ए-ग़म सोज़िश-ए-जाँ |
− | उस की रंगीन नज़र और नुक़ूश-ए-हिरमा | + | उस की रंगीन नज़र और नुक़ूश-ए-हिरमा |
− | उस का एहसास-ए-लतीफ़ और शिकस्त-ए-अरमा | + | उस का एहसास-ए-लतीफ़ और शिकस्त-ए-अरमा |
− | तानाज़न एक ज़माना नज़र आया होगा | + | तानाज़न एक ज़माना नज़र आया होगा |
− | झुक गई होगी जवाँ-साल उमंगों की जबीं | + | झुक गई होगी जवाँ-साल उमंगों की जबीं |
− | मिट गई होगी ललक डूब गया होगा यक़ीं | + | मिट गई होगी ललक डूब गया होगा यक़ीं |
− | छा गया होगा धुआँ घूम गई होगी ज़मीं | + | छा गया होगा धुआँ घूम गई होगी ज़मीं |
− | अपने पहले ही घरोंदे को जो ढाया होगा | + | अपने पहले ही घरोंदे को जो ढाया होगा |
− | दिल ने ऐसे भी कुछ अफ़साने सुनाये होँगे | + | दिल ने ऐसे भी कुछ अफ़साने सुनाये होँगे |
− | अश्क आँखों ने पिये और न बहाये होँगे | + | अश्क आँखों ने पिये और न बहाये होँगे |
− | बन्द कमरे में जो ख़त मेरे जलाये होँगे | + | बन्द कमरे में जो ख़त मेरे जलाये होँगे |
− | इक-इक हर्फ़ जबीं पर उभर आया होगा | + | इक-इक हर्फ़ जबीं पर उभर आया होगा |
− | उस ने घबरा के नज़र लाख बचाई होगी | + | उस ने घबरा के नज़र लाख बचाई होगी |
− | मिट के इक नक़्श ने सौ शक़्ल दिखाई होगी | + | मिट के इक नक़्श ने सौ शक़्ल दिखाई होगी |
− | मेज़ से जब मेरी तस्वीर हटाई होगी | + | मेज़ से जब मेरी तस्वीर हटाई होगी |
− | हर तरफ़ मुझ को तड़पता हुआ पाया होगा | + | हर तरफ़ मुझ को तड़पता हुआ पाया होगा |
− | बेमहल छेड़ पे जज़्बात उबल आये होँगे | + | बेमहल छेड़ पे जज़्बात उबल आये होँगे |
− | ग़म पशेमा तबस्सुम में ढल आये होँगे | + | ग़म पशेमा तबस्सुम में ढल आये होँगे |
− | नाम पर मेरे जब आँसू निकल आये होँगे | + | नाम पर मेरे जब आँसू निकल आये होँगे |
− | सर न काँधे से सहेली के उठाया होगा | + | सर न काँधे से सहेली के उठाया होगा |
− | ज़ुल्फ़ ज़िद कर के किसी ने जो बनाई होगी | + | ज़ुल्फ़ ज़िद कर के किसी ने जो बनाई होगी |
− | रूठे जलवों पे ख़िज़ाँ और भी छाई होगी | + | रूठे जलवों पे ख़िज़ाँ और भी छाई होगी |
− | बर्क़ आँखों ने कई दिन न गिराई होगी | + | बर्क़ आँखों ने कई दिन न गिराई होगी |
− | रंग चेहरे पे कई रोज़ न आया होगा | + | रंग चेहरे पे कई रोज़ न आया होगा |
− | होके मजबूर मुझे उस ने भुलाया होगा | + | होके मजबूर मुझे उस ने भुलाया होगा |
− | ज़हर चुप कर के दवा जान के ख़ाया होगा< | + | ज़हर चुप कर के दवा जान के ख़ाया होगा |
+ | </poem> |
10:37, 10 मई 2014 का अवतरण
रूह बेचैन है इक दिल की अज़ीयत क्या है
दिल ही शोला है तो ये सोज़-ए-मोहब्बत क्या है
वो मुझे भूल गई इसकी शिकायत क्या है
रंज तो ये है के रो-रो के भुलाया होगा
वो कहाँ और कहाँ काहिफ़-ए-ग़म सोज़िश-ए-जाँ
उस की रंगीन नज़र और नुक़ूश-ए-हिरमा
उस का एहसास-ए-लतीफ़ और शिकस्त-ए-अरमा
तानाज़न एक ज़माना नज़र आया होगा
झुक गई होगी जवाँ-साल उमंगों की जबीं
मिट गई होगी ललक डूब गया होगा यक़ीं
छा गया होगा धुआँ घूम गई होगी ज़मीं
अपने पहले ही घरोंदे को जो ढाया होगा
दिल ने ऐसे भी कुछ अफ़साने सुनाये होँगे
अश्क आँखों ने पिये और न बहाये होँगे
बन्द कमरे में जो ख़त मेरे जलाये होँगे
इक-इक हर्फ़ जबीं पर उभर आया होगा
उस ने घबरा के नज़र लाख बचाई होगी
मिट के इक नक़्श ने सौ शक़्ल दिखाई होगी
मेज़ से जब मेरी तस्वीर हटाई होगी
हर तरफ़ मुझ को तड़पता हुआ पाया होगा
बेमहल छेड़ पे जज़्बात उबल आये होँगे
ग़म पशेमा तबस्सुम में ढल आये होँगे
नाम पर मेरे जब आँसू निकल आये होँगे
सर न काँधे से सहेली के उठाया होगा
ज़ुल्फ़ ज़िद कर के किसी ने जो बनाई होगी
रूठे जलवों पे ख़िज़ाँ और भी छाई होगी
बर्क़ आँखों ने कई दिन न गिराई होगी
रंग चेहरे पे कई रोज़ न आया होगा
होके मजबूर मुझे उस ने भुलाया होगा
ज़हर चुप कर के दवा जान के ख़ाया होगा