भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"नौका / सर्जिओ इन्फेंते / रति सक्सेना" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सर्जिओ इन्फेंते |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
13:55, 3 सितम्बर 2014 के समय का अवतरण
यात्रा में
दिखती हो तुम,
नहीं सुनाई देती तुम्हारी आवाज।
गलही-विनिवेशित
विषुवतीय वायु
कर लेती है अधिकार
और बहती रहती है निरंतर।
हमेशा अथक रहने वाली
सामुद्रिक चिड़ियाएँ हैं,
फासले नापने को
जमीन नहीं है चारों ओर।
सिर्फ एक समुद्र है
और चमचमाते चाकुओं सी
उड़ती मछलियाँ।
सिर्फ एक समुद्र है
और हर रोमरंध्र में
अंगारे दहकाता
सूर्य का लंगर।
सिर्फ एक समुद्र है,
फासले नापने को
जमीन नहीं है चारों ओर।
बस एक समुद्र है,
हर ज्वार में उभरती
घर की प्रतिच्छवि
और एक घनीभूत पीड़ा।
फासले नापने को
जमीन नहीं है चारों ओर।
महज एक समुद्र
चारों ओर नहीं है
दूरियाँ जतलाता
कोई भी भू-खंड।