"जो गरीबां नै संभालै / दयाचंद मायना" के अवतरणों में अंतर
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दयाचंद मायना |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
01:05, 4 सितम्बर 2014 के समय का अवतरण
जो गरीबां नै संभालै, इसे प्रधान की जरूरत है
रोटी, कपड़ा, बसण नै, मकान की जरूरत है...टेक
भुखमरी का शोर चोगरदे, या कैसी आजादी माँ
इतना महंगा नाज बिकै, ये बेरोजगार कड़ै तै खां
कुछ लेकै आवै, कुछ देके जा, इसे महमान की जरूरत है
जो भर-भर कै बुगटे बांटैं, इसे इंसान की जरूरत है...
भूख मिटादे, कष्ट हटा दे, गुण भूलूं ना दादी का
पहला तै भी ईब दुखी, के सुख देख्या आजादी का
मोटा वस्त्र खादी का, पहरान की जरूरत है
बस इतनी-सी कर दे दया, दान की जरूरत है...
भुजा ठोंक कै, हाथ मिलावै, दां लावै पहलै झटकै
इसे खिलाड़ी माणस आगै, पहलवान कोन्या अटकै
इस महंगाई नै नीचे पटकै, इसे बलवान की जरूरत है
आल्हा, उदल, सिरसे के मलखान की जरूरत है...
पेड़ बड़ाए हो सै कैर का, कोन्या लागै पात ‘दयाचन्द’
क्यूं होरा सै गैल, छोड़दे, इन झूठां का साथ दयाचन्द
जग में साची बात ‘दयाचन्द’ गान की जरूरत है
सुर म्हं कह दे, इसी रसीली, जुबान की जरूरत है...