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कभी अपने आप से
हम डर जाते हैं
जब अपनी ही ताक़त
देख लेते हैं
तब लग़ता है
हमें सज़ा मिलेगी
हम रटी हुई बोली में
जल्दी-जल्दी दुहराते है
कोई पाठ
और सर्वव्यापी पिता की शीतल छाया में
आकर खड़े हो जाते हैं