भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"काशी / नज़ीर बनारसी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नज़ीर बनारसी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

07:14, 16 अक्टूबर 2014 के समय का अवतरण

उठ सकेगा न एहसाँ तुम्हारा
हमको दुनिया से उठना गवारा

दिल की क़िस्मत मंं था चोट खाना
आपने कौन सा तीर मारा

देख दीवानगी का मुक़द्दर
हाथ उनका है दामन हमारा

ज़िन्दगी का नहीं कुछ ठिकाना
चलिए देख आयें उनको दोबारा

जब हिली फूल की कोई डाली
हमने समझा इशारा तुम्हारा

आये ऐसे भी झोंके हवा के
हमने समझा कि तुमने पुकारा

काशी नगरी ’नजीर’ अपनी नगरी
बुत के हम और हर बुत हमारा

शब्दार्थ
<references/>