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ठुनुकि-ठुनुकि ठिठुकी कठपुतरी।
रंगे काठ के जामा भीतर
अनफुरू<ref>सचमुच</ref> पिंजरा पंछी ब्वाला,
नाचि-नाचि अँगुरिन पर थकि-थकि
ठाढ़ि ठगी असि जसि कठपुतरी।
छिनु बोली, छिनु रोयी गायी,
धायी धक्कन उछरि-पछरि फिरि;
उयि ठलुआ की ठलुहायिन ते
परी ‘चकल्लस’ मा कठपुतरी।
शब्दार्थ
<references/>