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16:35, 7 नवम्बर 2014 के समय का अवतरण

दिखला देते एक बार वह
मेरे मुख की अमर छटा जब,
हो विभोर छाती में कसकर,
मैंने चूमा कैसा ?
फिर लाऊँ ? कैसे पाऊँ ?
वह मुसकान खो गयी कब की,
चूँमू? लो चूँमूगी रो-रो,
हँसू ! हंसी थी उस दिन जैसा ?

शब्दार्थ
<references/>