भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"ऐसे मैं मन बहलाता हूँ / हरिवंशराय बच्चन" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह=
 
|संग्रह=
 
}}
 
}}
सोचा करता बैठ अकेले,<br>
+
{{KKCatKavita}}
गत जीवन के सुख-दुख झेले,<br>
+
<poem>
दंशनकारी सुधियों से मैं उर के छाले सहलाता हूँ!<br>
+
सोचा करता बैठ अकेले,
ऐसे मैं मन बहलाता हूँ!<br><br>
+
गत जीवन के सुख-दुख झेले,
 +
दंशनकारी सुधियों से मैं उर के छाले सहलाता हूँ!
 +
ऐसे मैं मन बहलाता हूँ!
  
नहीं खोजने जाता मरहम,<br>
+
नहीं खोजने जाता मरहम,
होकर अपने प्रति अति निर्मम,<br>
+
होकर अपने प्रति अति निर्मम,
उर के घावों को आँसू के खारे जल से नहलाता हूँ!<br>
+
उर के घावों को आँसू के खारे जल से नहलाता हूँ!
ऐसे मैं मन बहलाता हूँ!<br><br>
+
ऐसे मैं मन बहलाता हूँ!
  
आह निकल मुख से जाती है,<br>
+
आह निकल मुख से जाती है,
मानव की ही तो छाती है,<br>
+
मानव की ही तो छाती है,
लाज नहीं मुझको देवों में यदि मैं दुर्बल कहलाता हूँ!<br>
+
लाज नहीं मुझको देवों में यदि मैं दुर्बल कहलाता हूँ!
ऐसे मैं मन बहलाता हूँ!<br><br>
+
ऐसे मैं मन बहलाता हूँ!
 +
</poem>

09:31, 27 नवम्बर 2014 के समय का अवतरण

सोचा करता बैठ अकेले,
गत जीवन के सुख-दुख झेले,
दंशनकारी सुधियों से मैं उर के छाले सहलाता हूँ!
ऐसे मैं मन बहलाता हूँ!

नहीं खोजने जाता मरहम,
होकर अपने प्रति अति निर्मम,
उर के घावों को आँसू के खारे जल से नहलाता हूँ!
ऐसे मैं मन बहलाता हूँ!

आह निकल मुख से जाती है,
मानव की ही तो छाती है,
लाज नहीं मुझको देवों में यदि मैं दुर्बल कहलाता हूँ!
ऐसे मैं मन बहलाता हूँ!